"कभी सोने की चिड़िया था देश मेरा,
आज चिड़ियों का जीना ही दूभर
यहां,
कभी होती थी पूजा स्त्री की यहां,
आज स्त्रियां ही जीने को बेबस
यहां,
कभी पूजते थे मां को माता की तरह,
आज मां को ही रखना मंजूर नहीं,
कभी आगे थी स्त्रियां पुरूषों से,
आज पुरूष ही भक्षक हो गया तो
क्या करें,
कभी रिशतों की थी अहमियत यहां,
आज रिशते ही खो गये तो क्या करें,
कभी होती थी भाभी मां की तरह,
आज भाभी पर तेरी कुदर्ष्टि है तो
क्या करें,
कभी घुंघट में थी स्त्री तो चलती
थी,
आज तोड़ा है घुंघट तो चुभती है
क्यों,
कभी रहती थी घर में अशिक्षित की
तरह,
आज शिक्षित है तुझसे तो चुभती है
क्यों,
कभी होती थी मूल्यों की कद्र
यहां,
आज हो गया मूल्यों का हास यहां,
कभी करती थीं भरोसा पुरूषों पर यह,
आज पुरूषों से ही ज्यादा डरती
हैं क्यों,
आज अन्दर भी मरती हैं स्त्रियां,
आज बाहर भी मरती हैं स्त्रियां,
अगर है यही वो भारत देश मेरा,
तो न आना इस देश में स्त्री तू
यहां,
फिर रहेगा कैसे अकेला तू देखें
ज़रा,
कभी सोंने की चिड़िया था देश
मेरा,
आज स्मरतियों में बहता है देश
मेरा....."
© !!!!!!!!!! सुनील कुमार !!!!!!!!! 17-03-2013.