Sunday, March 17, 2013

स्त्री के प्रति.

"कभी सोने की चिड़िया था देश मेरा,
आज चिड़ियों का जीना ही दूभर यहां,

कभी होती थी पूजा स्त्री की यहां,
आज स्त्रियां ही जीने को बेबस यहां,

कभी पूजते थे मां को माता की तरह,
आज मां को ही रखना मंजूर नहीं,

कभी आगे थी स्त्रियां पुरूषों से,
आज पुरूष ही भक्षक हो गया तो क्या करें,

कभी रिशतों की थी अहमियत यहां,
आज रिशते ही खो गये तो क्या करें,

कभी होती थी भाभी मां की तरह,
आज भाभी पर तेरी कुदर्ष्टि है तो क्या करें,

कभी घुंघट में थी स्त्री तो चलती थी,
आज तोड़ा है घुंघट तो चुभती है क्यों,

कभी रहती थी घर में अशिक्षित की तरह,
आज शिक्षित है तुझसे तो चुभती है क्यों,

कभी होती थी मूल्यों की कद्र यहां,
आज हो गया मूल्यों का हास यहां,

कभी करती थीं  भरोसा पुरूषों पर यह,
आज पुरूषों से ही ज्यादा डरती हैं क्यों,

आज अन्दर भी मरती हैं स्त्रियां,
आज बाहर भी मरती हैं स्त्रियां,

अगर है यही वो भारत देश मेरा,
तो न आना इस देश में स्त्री तू यहां,

फिर रहेगा कैसे अकेला तू देखें ज़रा,
कभी सोंने की चिड़िया था देश मेरा,
आज स्मरतियों में बहता है देश मेरा....."


© !!!!!!!!!! सुनील कुमार !!!!!!!!! 17-03-2013.

तलाश


"आज दिल में इक हल्की सी चुभन है,
यह आहट है किसी खुशनुमा एहसास की,
या खवाब कोई टूटने को है,

हैं खामोश मेरी सांसों का शोर आज,
या हवा में आज नमी है कम,

इक अजीब सी कशमश में है मन,
कभी उड़ता है उन्मुक्त गगन में,
कभी घुटन है बन्द कोनों में कहीं,

कभी सोचता है के अब न आएगा कोई,
कभी आते जाते सब को देखता है यह,

आज धड़कन की भी न सुनता है मेरी यह,
कल धड़कता था उसकी याद में हर पल यह,

आज तो हाल यह है के तलाश ए सुकून की तलाश में भटकता है,
जाने किस गली किस मोड़ पर मिले चैन मेरे इस दिल को...."

© !!!!!!!!! सुनील कुमार !!!!!!!!!! 16-03-2013.

सुबह की महक

"आती है मदमस्त सुबह हर दिन को हर रोज़,
हर प्राणी में नए उतसाह का संचार भरती है सुबह,
पक्षी अपनी धुन में गाते हैं हर रोज़ सुबह,
नए मधु की तलाश में भवरें जाते कली कली,
घाट घाट पर जाती सखियां आपस में इठलाती हैं,
जाता हैं हर रोज़ सुबह किसान खेतों में सोना उगाने को,
चमकती है सूरज की धूप में किरणें आेस की,
यूं चमती हो मणि कोई,
गाता है हर व्यकित जीवन में गीत नया,
चढ़ती है हर रोज़ सुबह नए अरमानों के साथ सदा...."

© !!!!!!!!!
सुनील कुमार !!!!!!!!!! 11-03-2013.....

Sunday, March 10, 2013

2012 के चर्चित उपन्यास

मनीषा कुलश्रेष्ठ : शालभंजिका
रजनी गुप्त : कुलजमा बीस
सरीता शर्मा : जीने के लिए
जयश्री राय : आैरत जो नहीं है
कविता : मेरा पता काई आैर है
शरद सिंह : कस्बाई शिमोन
नीलेश रघुवंशी : एक कस्बे के नोटस
महुआ माजी : मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ
नासिरा शर्मा : अजनबी जज़ीरा
राकेश कुमार सिंह : हुलपहाड़िया
नीलाभ : हिचकी
शैलेन्र्द सागर : एक सुबह यह भी
नरेन्द्र नागदेव : एक सिवच था भाेपाल
मदन मोहन : जहां जंगल था
मुदराराक्षस : अर्दकरत
ज्ञानप्रकाश विवेक : तलघर
मनोज सिंह : कश म कश
केशव : आखेट
प्रियदर्शन मालवीय : घर का आखिरी कमरा
अशोक भैमिक : शिप्रा एक नदी का नाम है
परवेज़ अहमद : मिर्जावाड़ी
काशीनाथ सिंह : महुआ चरित

सुनील कुमार 09-03-2013

एक भाव

"तेरी याद सीने से जाती नहीं है,
यह अशक मेरे सूख़ते ही नहीं हैं,
भरने को तो हर जख़म भर जाता है,
पर तेरे दिए जख़म भरते ही नहीं,
या तो चला जा जिन्दगी से मेरी सदा के लिए,
यह बार बार आना तेरा सताता है मुझे,
मगर याद तू इतना रख़न,
के भूल पाएगा नहीं तू कभी मूझे भी,
याद आउंगा तुझे भी मैं,
मैं तो तेरी रूह में समाया हूं,
कहां तक जुदा कर पाएगा तू रूह को अपने जिस्म से...."

© !!!!!! सुनील कुमार !!!!!! 11-03-2013.

शिकायत

"यह कैसी जिंदगी दी तूने मुझे मेरे रब,
कभी तो कोख़ में ही मरी मैं,
कभी ज़िंदा रहकर रोज़ मरती रही मैं,

इतने दर्द दिए तूने मुझे,
के अपने होने पर पछताती रही मैं,

कभी आशाआें के दीप जलाए मैंने,
कभी ख़ुद ही उन दीपों को बुझाआ मैंने,

यह कैसा समाज दिया तूने मुझे,
कभी अपना बनाया सबने मुझे,
कभी अपनों ने ही ठोकरें दी मुझको,

दिया तूने जननी का हक मुझे,
मगर मिलके सब ने जलाया मुझे,

जपती रही हर पल तेरा नाम मैं,
मगर तूने भी बचाया न मुझको,

आंसुआें से भर दिया दामन मेरा,
कभी न सुकून पाया मैंने,

सोचा था बदलेगी सोच इक दिन,
पर हमेशा परम्परा को निभाया सबने,

कभी हो सके तो आ जाआे लेकर अवतार तुम ही,
के खुद ही देख़ लो इंसानो के समाज मैं तेरे,
बसते हैं हैवान आज यहां,

न संवेदना है न आभास किसी को,
बस करते हैं बलात्कार, हत्या आैर शोषण मेरा,

अगर एेसा ही रहा चलता सब,
तो हो जाएगी खत्म हस्ती मेरी इक दिन......"

© !!!!!!!!! सुनील कुमार !!!!!!!!!!!! 10-03-2013.