Sunday, March 10, 2013

शिकायत

"यह कैसी जिंदगी दी तूने मुझे मेरे रब,
कभी तो कोख़ में ही मरी मैं,
कभी ज़िंदा रहकर रोज़ मरती रही मैं,

इतने दर्द दिए तूने मुझे,
के अपने होने पर पछताती रही मैं,

कभी आशाआें के दीप जलाए मैंने,
कभी ख़ुद ही उन दीपों को बुझाआ मैंने,

यह कैसा समाज दिया तूने मुझे,
कभी अपना बनाया सबने मुझे,
कभी अपनों ने ही ठोकरें दी मुझको,

दिया तूने जननी का हक मुझे,
मगर मिलके सब ने जलाया मुझे,

जपती रही हर पल तेरा नाम मैं,
मगर तूने भी बचाया न मुझको,

आंसुआें से भर दिया दामन मेरा,
कभी न सुकून पाया मैंने,

सोचा था बदलेगी सोच इक दिन,
पर हमेशा परम्परा को निभाया सबने,

कभी हो सके तो आ जाआे लेकर अवतार तुम ही,
के खुद ही देख़ लो इंसानो के समाज मैं तेरे,
बसते हैं हैवान आज यहां,

न संवेदना है न आभास किसी को,
बस करते हैं बलात्कार, हत्या आैर शोषण मेरा,

अगर एेसा ही रहा चलता सब,
तो हो जाएगी खत्म हस्ती मेरी इक दिन......"

© !!!!!!!!! सुनील कुमार !!!!!!!!!!!! 10-03-2013.

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