"कोई मिलकर दगा देता हैं,
कोई बिछड़कर रुला देता है,
कोई बिछड़कर रुला देता है,
यह कैसा सफ़र है ज़िन्दगी का,
कोई हमसफ़र बनकर दगा देता है कोई राही उमर भर के लिए हमराही बन जाता है......"
कोई हमसफ़र बनकर दगा देता है कोई राही उमर भर के लिए हमराही बन जाता है......"
कॉपीराइट @ सुनील कुमार सलैड़ा २४.५.१४
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