"उडते हुए परिंदों की
नब्ज़ टटोलता है तू,
कभी ज़मीन पर रहते इंसानों की बात भी पूछ,
परिंदों का तो जहां न कोई हुआ कभी,
आज यहां कल वहां उड़ जाएंगे,
रहेंगे जो उमर भर साथ तेरे,
कभी उन बिमारों का हाल भी पूछ तू..."
© सुनील कुमार सलैडा 20-05-2013
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