"आज बरसात ने अपनी छटा है बिखराई,
तेरे साथ में
मैंने जीवन की झलक है पाई,
क्या खूब कुदरत
ने यह समां है बांधा,
के मैंने तेरे
प्यार की वफ़ा है पाई,
के भिगने दे आज
मुझे इस बरसात मैं
क्योंकि आज ही
मैंने यह रंगत है पाई,
तेरे भीगें लबों
पे वो हया की लाली है छाई आज,
के तेरी काया ने
भी खुलकर ली अंगडाई है आज,
तेरे कदमों पे न
है कोई लगाम आज,
के थिरकते हैं वो
बूंदों के संगीत में आज,
के उमड़ा है
सैलाब आज सीने से तेरे,
के तोड़े हैं आज
भीतर के गुबार तूने,
के हसरत है आज
मेरी यही,
के उड़ती रहे यूं
ही तूफानों में भी हर पल यूं ही तू,
के ग़र तूने जो
ठानी ली एक बार,
तो रोक सकेगा
क्या तूझे ये बैरी संसार,
रौंद दे इसको तू
कदमों के नीचे आज,
के बना ले अपने
लिए रास्ते हज़ार तू,
के आज बरसात ने
छटा अपनी है बिखराई आज....."
© !!!!!!!!!! सुनील कुमार सलैडा (Sunil Kumar Saliada)!!!!!!!!!!!!!!
27-04-2013.
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