"कुछ गुफगू तेरे साथ हुई,
कुछ वादे तेरे साथ हुए,
बदल जाता है यह वक्त बदले यार की तरह,
फिर खुद से ही किए वादे हमने,
खुद से ही गूफतगू कर ली हमने,
यही हशर होता है मोहब्बत की मंजिल में,
कभी फूलों सी लगती है कांटों की डगर भी,
कभी सुख जाते हैं फूल दिल की विरानियों में..."
© सुनील कुमार सलैडा 18-05-2013
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