"तेरी आग़ोश में खो जाता
हूं,
जब भी तू मिलता है मुझे,
डूब जाता है तेरी पलकों की गहराई में दिल यह मेरा,
झुक जाती हैं पलकें तेरी भी शरम की हया से,
जब छूता हूं तेरे थरथराते होठों को मैं,
तो मदहोशी के आलम में बह जाते हैं हम दोनों दुनिया की इस भीड़ से परे,
खो जाते हैं हम सितारों की दुनिया में मुक्त अपने आपसे हम,
अक्सर तेरे आने से यूं ही खो जाते हैं हम..."
© सुनील कुमार सलैडा 21-05-2013
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